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हरी खाद क्या है Hari Khad Kya hai: फसलों की अच्छी पैदावार बनाये रखने के लिए मिट्टी के भौतिक, रसायनिक एवं जैविक गुणों का बढ़िया अवस्था में होना बहुत जरूरी है। परन्तु, रासायनिक खादों के लगातार उपयोग, सघन (intensive) कृषि,गेहूं-धान फसली चक्र एवं अति विश्लेषित खादों के प्रयोग से मिट्टी की सेहत लगातार खराब हो रही है, साथ ही मृदा के दोहन से उसमें उपस्थित पौधों की बढ़ोतरी के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी नष्ट होते जा रहे हैं। ऐसे में हरी खाद किसानों के खेतो के लिए मुनाफे का सौदा है।

हरी खाद क्या है Hari Khad Kya hai
किसान ने अपने खेत में हरी खाद के लिए ढेंचा बोया

आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु व मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने में हरी खाद एक उत्तम विकल्प है, क्योंकि मृदा स्वास्थ्य को अच्छी अवस्था में बनाए रखने में हरी खादें भी गोबर खाद जितनी ही उपयोगी पाई गई है।

हरी खाद क्या है Hari Khad Kya hai:

मृदा गुणों को अच्छी अवस्था में बनाए रखने में जैविक खादें जैसे कि गोबर खाद अहम भूमिका निभाती है, लेकिन पशुओं की घटती आबादी के कारण गोबर खाद की उपलब्धता भी घटती जा रही है। गोबर खाद की तरह हरी खाद भी जैविक खाद देने वाली एक फलीदार फसल है। वैसे भी आमतौर पर देखा गया है कि फसल चक्र में फलीदार और गैर फलीदार फसलों को खेत में बदल-बदल कर बीजने से मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ती है और स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

बिना सड़े गले हरे पौधे को जब मिट्टी की नत्रजन (नाइट्रोजन) या कार्बन जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए खेत में दबाया जाता है तो इस क्रिया को हरी खाद कहा जाता है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हरे पदार्थ के जमीन में गलने से जमीन में मौजूद पोषक तत्व घुलनशील हो जाते हैं और अगली फसल की खुराक का हिस्सा बन जाते हैं। हरी खाद के उपयोग से भूमि में न केवल नत्रजन उपलब्ध होती है बल्कि मृदा में कार्बन जीवांश और मित्र जीवों की जनसंख्या में भी बढ़ोतरी होती है, जिस से मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में भी सुधार होता है साथ ही जमीन में शूक्ष्म पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है और मृदा उर्वरता भी बेहतर हो जाती है।

हरी खाद कौन सी उगाएं

रेतीली जमीनें जहां आमतौर से लोहे की कमी आ जाती है, उन रेतीली जमीनों में हरी खाद की फसल लगाने से लोहे की कमी नहीं आती है। आमतौर से फलीदार फसलों जैसे कि सनहेम्प (सनई), बैंचा (जंतर), ग्वार, मूंगी, रवांह, बरसीम इत्यादि को हरी खाद के लिए वरीयता दी जाती है। इन फसलों की जड़ों में ग्रंथियां पाई जाती हैं जिस में राईजोबियम वायुमंडलीय नत्रजन (नाइट्रोजन) को हवा से खींचकर मिट्टी में स्थापित करते हैं, जिससे नाइट्रोजन खादों जैसे कि यूरिया की कम जरूरत पड़ती है और साथ ही मिट्टी की उर्वरता शक्ति बढ़ती है।

हरी खाद वाली फसल के आवश्यक गुण

  1. हरी खाद वाली फसल का वानस्पतिक भाग
    मुलायम, ज्यादा, तेजी से बढ़ने वाला एवं
    बिना रेशे वाला हो ताकि जमीन में जल्दी से
    सड़ गल जाए।
  2. हरी खाद वाली फसल गहरी जड़ों वाली हो
    ताकि वह जमीन की निचली सतह से पोषक
    तत्वों को खींच या सोख सके।
  3. हरी खाद वाली फसल की जड़ों में ज्यादा
    ग्रंथियां हों ताकि वायुमंडलीय नत्रजन
    (नाइट्रोजन) का ज्यादा से ज्यादा स्थिरीकरण
    हो सके।
  4. हरी खाद वाली फसल उगाने में कम लागत
    (खर्च) आए।

हरी खाद उगाने का सही समय

हरी खाद लगभग 45-60 दिनों में खेत में दबाने (ploughing) योग्य हो जाती है, इसलिए इसकी बिजाई अगली फसल लगाने से लगभग 45-60 दिन पहले करें। पंजाब जैसे राज्यों में इसकी बिजाई गेहूं की फसल की कटाई के बाद मई के पहले हफ्ते में की जा सकती है। अन्य राज्यों में सिंचित अवस्था में मानसून के 15-20 दिन पहले या असिंचित अवस्था में मानसून के आने के तुरंत बाद की जा सकती है।

हरी खाद बनाने की विधि

बैंचा और सनई हरी खाद के लिए लगभग 45-50 किलो बीज प्रति हैक्टेयर डालें। मूंग 25-30 किलो, बरसीम 20-25 किलो और लूसर्न 15-20 किलो प्रति हैक्टेयर डालें। फसल के अच्छे अंकुरण के लिए टैंचा या सनई के बीज को लगभग 8 घंटे तक पानी में भिगो कर रखें। बिजाई से पहले हरी फसल के बीज को राईजोबियम कल्चर (जीवाणु खाद) से टीकाकरण कर लें। बीज को छाया में आधे घंटे तक सूखा कर तुरंत तैयार खेत में बीज दें।

हरी खाद फसल में खाद प्रबंध

हरी खाद वाली फसल में खादें मिट्टी जांच के आधार पर डालें या फिर 20-25 किलोग्राम नत्रजन खाद (40-50 किलो यूरिया), 40-50 किलोग्राम फास्फोर्स खाद (250-300 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट) प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डालें।

यदि जमीन में पोटाशियम की कमी है तो हरी खाद वाली फसल में 20-25 किलोग्राम पोटाश खाद (35-40 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हैक्टेयर के हिसाब से उपयोग कर सकते हैं।

हरी खाद को खेत में दबाना (Ploughing)

45-60 दिनों वाली हरी खाद खेत में दबाने योग्य हो जाती है। धान की रोपाई से एक दिन पहले और मक्का की बिजाई से 10 दिन पहले हरी खाद की फसल को रोटावेटर या डिस्क हैरो की मदद से खेत में दबा या पलट दें। हरी खाद के माध्यम से हम 135-140 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर की बचत कर सकते हैं इसलिए अगली रोपाई या बिजाई वाली फसल में ऊपर बताई गई यूरिया की मात्रा (135-140 किलो) कम डालें। हरी खाद की फसल के बाद यदि बासमती की बिजाई करनी हो तो उसमें नत्रजन खाद जैसे कि यूरिया बिलकुल भी न डालें और अगर धान की फसल की रोपाई करनी हो तो उसमें 125-130 किलो यूरिया प्रति हैक्टेयर ही डालें।

हरी खाद के लाभ Hari Khad Ke Labh

  1. हरी खाद बीजने से अगली फसल में
    नत्रजन (नाइट्रोजन) खादों जैसे कि यूरिया
    इत्यादि पर खर्च कम होता है और लागत
    में भी कमी आती है।
  2. हरी खाद से जमीन में कार्बन जीवांश में
    बढ़ोतरी, मिट्टी भुरभुरी, सरंचना में सुधार,
    हवा एवं जल संचार में बढ़ोतरी, जल
    धारण क्षमता बढ़ती है।
  3. हरी खाद के उगाने से मृदा (मिट्टी) में
    सूक्ष्मजीवों की जनसंख्या में बढ़ोतरी होती
    है, जिससे जमीन में क्रियाशीलता बढ़ती
    है, साथ ही मिट्टी की उर्वरता शक्ति एवं
    उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।
  4. रेतली जमीनें जहां आमतौर से लोहे की
    कमी आ जाती है, उन रेतली जमीनों में
    हरी खाद की फसल लगाने से लोहे की
    कमी नहीं आती है।.

हरी खाद से संबंधित पूरी जानकारी आपको मिल चुकी है। इस लेख के माध्यम से आपने सीखा- हरी खाद क्या है, हरी खाद के लाभ क्या हैं, हरी खाद को बनाने की विधि क्या है, हरी खाद को उगाने के सही समय क्या है, हरी खाद की आवश्यकता क्यों होती है।