Multi Crop farming with mentha: उत्तर भारत में मेंथा की खेती विशेष तौर पर की जाती है जिसे किसान करके खेतों से लाखों में पैसे कमा रहे हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं इस मेंथा की खेती को और भी मुनाफे का बनाया जा सकता है। जी हाँ अब और मुनाफा होगा। अब आप सोच रहे होंगे कि मेंथा को तो हुम पहले से ही पैदा कर रहे हैं और इससे दो गुना फायदा कैसे हो सकता है। तो आपको बता दे की आप अपने खेत में मेंथा के साथ दूसरी फसल भी लगा सकते हैं। है ना कमाल की बात? अब आप मेंथा और कुछ दूसरी फसलों को लगाकर अच्छा पैसा कमा सकते हैं। अब जाने की बात ये है कि मेंथा के साथ हम कौन कौन सी दूसरी फसलों को लगा सकते हैं।
मेन्थॉल के लिए भूमि की कोई विशेष तैयारी नही करनी पड़ती, फिर भी अगर गन्ने के साथ सहफसली की जा रही है, तो गन्ने की बोआई की कूड विधि उचित रहती है। ऐसा करने से मेन्थॉल के लिए मेड़ विधि अपने आप ही मिल जाएगी, जो कि मेन्थॉल के लिए समतल विधि की अपेक्षा अधिक उत्तम है। मेन्थॉल की खेती के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस, 50 किलोग्राम पोटाश अतिरिक्त रूप से भूमि की ऊपरी सतह में मिला देना चाहिए। इसके बाद 50 किलोग्राम/हेक्टेयर के हिसाब से नाइट्रोजन की दो बार और आवश्यकता पड़ती है, जिसको मेन्थॉल मिन्ट लगाने के 35 से 40 और 50 से 60 दिन बाद छिड़काव द्वारा देना चाहिए।
मेंथा के साथ दूसरी फसल कैसे करें Multi Crop farming with mentha
मेन्थॉल की रोपाई
रोपाई अगर मार्च में की जा रही है, तो पौध से पौध की दूरी कम कर देनी चाहिए। यह अधिक खाद और पानी चाहने वाली फसल है, इसलिए आवश्यकतानुसार जल और पोषक तत्वों की पूर्ति करते रहना चाहिए। पानी की कमी होने से फसल में दीमक का प्रकोप हो सकता है। अतः पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए।साथ में यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि मेन्थॉल को अधिक पानी भी नुकसान पहुंचाता है। फसल में आम तौर पर कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है। फिर भी समय-समय पर निरीक्षण, कीटों और बीमारियों का प्रबंधन समुचित तरीके से करते रहना चाहिए।
- मेंथा की खेती कैसे करें
- भारत में मिट्टी कितने प्रकार की पाई जाती है
- मेंथा के साथ खेत में दो फसलें पैदा करें
कितनी पैदावार होती है
सामान्यतः मेड़ों पर रोपाई किए गए मेन्थॉल की फसल 70 से 80 दिन और समतल में रोपाई वाली फसल 90 से 100 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। ऊपर की पत्तियों का छोटा होना और नीचे की पत्तियों का पीला पड़ना परिपक्व फसल की मुख्य पहचान है। गन्ने के साथ मेन्थॉल की सह फसल लेने पर एक कटाई से 100 से 110 किलोग्राम तेल प्रति हेक्टेयर की दर से मिल जाता है।
खस के साथ मेन्थॉल की खेती
असिंचित दशाओं में खस की रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई होता है। लेकिन जहां पर खस की खेती एक वर्षीय फसल के रूप में की जाती है, वहां पर खस की खुदाई के बाद पौध सामग्री की सहज उपलब्धता और एक वर्षीय फसल के लिए खस की रोपाई जनवरी या फरवरी में की जानी चाहिए। आमतौर पर खस की रोपाई 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर की जाती है और खस की प्रत्येक लाइन के बीच में एक लाइन मेन्थॉल की रोपाई और पौधे से पौधे की दूरी लगभग 20 से 30 सेंटीमीटर के अंतराल पर करनी चाहिए। मेन्थॉल और खस की रोपाई के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। खस के साथ अन्तः फसल के रूप में पैदा की गई मेन्थॉल की फसल से 130 से 140 किलोग्राम तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है।

Mentha ke sath dusari fasal bhi kar sakte hain
ग्रीष्मकालीन मक्का के साथ मेन्थॉल की खेती
उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार के तराई क्षेत्रों में फरवरी में मक्का की खेती चारा, भुट्टा और दाने के उत्पादन के लिए की जाती है। अतः फरवरी में बोआई की जाने वाली मक्का के साथ मेंन्थॉल की खेती सफल रूप से की जा सकती है। लेकिन चारे वाली मक्का के लिए अलग और भुट्टे और दाने वाली मक्का के लिए अलग तरीके का चुनाव करना चाहिए। चारे वाली मक्का के साथ मेंन्थॉल की 50 से 60 सेंटीमीटर की दूरी पर प्रत्येक दो लाइनों के बाद एक लाइन मक्के की बोयी जाती है, जिसमें मक्के के पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखी जाती है।
लेकिन भुट्टे और दाने वाली मक्का के साथ मेन्थॉल की प्रत्येक 3 या 4 लाइनों के बाद मक्के की एक लाइन बोनी चाहिए और पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। मक्का के साथ मेंन्थॉल की खेती करते समय रोपाई और मक्का की बोआई साथ- साथ नहीं करना चाहिए। या तो मक्के में पहला पानी लगने के समय रोपाई करना चाहिए या फिर रोपाई के 5 से 6 दिन बाद मक्का की बोआई करनी चाहिए। इस पद्धति में मक्का के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा का लगभग 1/3 भाग मक्का के लिए मेन्थॉल के अतिरिक्त देना चाहिए। मेन्थॉल की लाइन से लाइन की दूरी 50 से 60 और पौधे से पौधे की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इस पद्धति में मेन्थॉल के तेल की पैदावार लगभग 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाती है।
भिन्डी के साथ मेन्थॉल की खेती
सामान्यतः मेन्थॉल की तरह ही भिंडी की बोआई फरवरी से शुरू होकर बरसात तक निरंतर चलती रहती है। भिंडी के साथ मेन्थॉल की सहखेती बहुत अच्छी फसल है। अगर मेन्थॉल की खेती मेड़ों पर की जा रही है तो भिंडी के लिए कुंडों वाली जगह का चुनाव करना चाहिए। मेड़ बनाने के बाद मेड़ के दोनों तरफ मेन्थॉल की रोपाई कर देनी चाहिए और कूडों में सिचाई कर देनी चाहिए। भिंडी के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को उपयुक्त उर्वरक द्वारा मेंन्थॉल की रोपाई के 4 से 5 दिन बाद कुंडों में गुड़ाई के साथ अच्छी तरह से मिलाने के बाद भिंडी के बीजों की बोआई करनी चाहिए और मेन्थॉल में दूसरी सिंचाई भिंडी के अंकुरण के बाद करनी चाहिए। भिंडी की लाइन से लाइन की दूरी सामान्यतः 50 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है और प्रत्येक दो लाइनों के बीच मे एक लाइन की रोपाई 20 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर कर दी जाती है। इस पद्धति में मेन्थाल के तेल की उपज लगभग 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो जाती है। अन्तः फसल के लिए कटी हुई पत्ती वाली भिंडी की प्रजाति का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी रहता है।
मूली के साथ मेन्थॉल की खेती
अगर मेन्थॉल की खेती बलुई दोमट मिट्टी में की जा रही है तो मूली के साथ अन्तः फसल के रूप में मेन्थॉल की खेती अधिक उपयुक्त रहती है। लेकिन इस पद्धति में मेन्थॉल के लिए मेड़ विधि का चुनाव a ठीक नहीं रहता। इस पद्धति में मेन्थॉल की रोपाई 60 से 75 सेंटीमीटर की दूरी पर जिसमें पौधे से पौधे की दूरी 15 से 25 सेंटीमीटर रखी जाती है। रोपाई के बाद सिंचाई कर दी जाती है। उसके 4 से 5 दिन बाद जब खेत में कृषि क्रियाएं की जा सकें तो मूली की दो लाइनें मेन्थॉल की हर दो लाइनों के बीच में बो दी जाती है। इस पद्धति में मेन्थॉल के तेल की उपज 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के आसपास रहती है। मूली की कम और सीधी बढ़ने वाली पत्ती वाली प्रजाति का चुनाव अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी रहता है।
प्याज के साथ मेन्थॉल की खेती
मूली की तरह प्याज के साथ भी मेन्थॉल की खेती समतल विधि में ही अधिक सफल रहती है। मेन्थॉल की दो लाइनों के बीच में प्याज की 2 से 3 लाइनें लगाई जा सकती हैं। इस पद्धति में मेन्थॉल के तेल की उपज लगभग 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर आ जाती है। अगर प्याज की खेती पत्तियों के लिए की जा रही है तो लाइनों की संख्या 4 तक भी बढ़ाई जा सकती है।
गेहूं के साथ मेन्थॉल की खेती
उत्तर भारत के मैदानी भागों में गेहूं एक मुख्य फसल है और इस फसल को कटने के समय तक मेन्थॉल की रोपाई के लिए विलंब हो जाता है। अगर गेंहूं की खड़ी फसल में कुछ दिन तक साथ-साथ और गेंहू कटने के कुछ दिन बाद तक मेन्थॉल की खेती ओवरलैपिंग फसल के रूप में की जाती है तो यह अधिक लाभकारी रहती है। इस पद्धति में गेंहूं की बोआई में जुड़वा लाइन विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें गेहूं की दो लाइनों के बीच की दूरी घटाकर 25 से 10 सेंटीमीटर कर दी जाती है और उसके बाद अगली दो लाइनों के बीच की दूरी 45 सेंटीमीटर कर दी जाती है। गेहूं की फसल में नबर से फरवरी तक बीच में उपलब्ध 45 सेंटीमीटर जगह पर कम समय में पैदा होने वाली सब्जी वाली फसल जैसे धनिया या मूली ली जाती है।
धनिया या मूली या पालक या मेथी फरवरी में उखाड़ लेने के बाद गेहूं की दो लाइनों के ठीक बीच में मेन्थॉल की एक लाइन की रोपाई फरवरी के अंतिम या मार्च के पहले सप्ताह में कर दी जाती है। इस तरह मेन्थॉल की प्रत्येक दो लाइनों के बीच में 60 सेंटीमीटर की दूरी बन जाती है। मेन्थॉल के पौधे से पौधे के बीच की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर रखी जाती है। गेहूं की कटाई के बाद मेन्थॉल की फसल को मई में काट लिया जाता है। इस प्रकार नवंबर से मई तक कुल तीन फसलें ली जाती है। इस पद्धति में मेन्थॉल के तेल की उपज 80 से 90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। इस पद्धति से गेहूं काटने के बाद उसी स्थान पर देर ली जाने वाली गन्ने की बोआई मेन्थॉल के साथ की जा सकती है, जोकि खेत में पहले से ही उपलब्ध होता है।
मेरी सलाह
जैसा की आप लोगों ने ऊपर जाना कि मेंथा के साथ दूसरी फसल कैसे करें (Multi Crop farming with mentha). मेरे हिसाब से आपको इसे अपने खेतों में ज़रूर करना चाहिए। इससे आपको अच्छा फायदा होगा और साथ ही मेंथा के साथ दूसरी फसल को पैदा करने का अनुभव भी प्राप्त हो जायेगा।
मेरे किसान भाइयों इस वेबसाइट पर आपको मेंथा से जुडी हर तरह की जानकारी मिलेगी। क्या आपने कभी अपने खेतों में मेंथा की खेती की है, यदि हाँ तो आपको कितना फायदा हुआ। आप अपने अनुभव हमें menthaoilrat[email protected] पर भेजे आपके अनुभवों को इस वेबसाइट पर दिखाया जायेगा.