भारत की मिट्टी और मिट्टी के प्रकार: धरती की ऊपरी परत की तह को मिट्टी कहते हैं । स्थानीय जलवायु के आधार पर ही मिट्टी अपना स्वरूप धारण करती है। पहाड़ी पथरीली जमीन पर मिट्टी कड़ी होती है, तो समुद्री क्षेत्रों में पीली मिट्टी पाई जाती है। मैदानी क्षेत्रों की मिट्टी सर्वोत्तम होती है- विशेषतः नदियों के आसपास की मिट्टी सबसे अच्छी होती है। मिट्टी के विभिन्न किस्मों के कारण ही विभिन्न किस्म की फसलें विभिन्न क्षेत्रों में पैदा होती हैं। मिट्टी की विशेषता के कारण की तरह-तरह की उपजें विभिन्न क्षेत्रों में बदल जाती हैं। मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में उगा आलू स्वाद में भी भिन्न-भिन्न होता है।

मिट्टी और मिट्टी के प्रकार (Types Of Soils In Hindi)
मिट्टी की इस महत्त्वपूर्ण विशेषता को देखते हुए इस बात की जानकारी होनी आवश्यक है कि जहाँ अपनी वाटिका का चयन किया जाये, वहाँ की मिट्टी की परख करके यह जाँच लेना चाहिये कि वहाँ किस प्रकार की मिट्टी है, ताकि मिट्टी के अनुसार ही उपज कर सकें। भू-वैज्ञानिकों ने मिट्टी के तीन प्रकार बताए हैं, जो इस प्रकार हैं-
- दोमट मिट्टी
- रेतीली मिट्टी
- चिकनी मिट्टी
प्रकृति के प्रमुख उपहारों में मिट्टी मानव-समाज के लिए वरदान है। इसी मिट्टी से मानव पानी, हवा और रोशनी के संयोग से खाद्य-पदार्थ प्राप्त करते हैं। विस्तृत भूमि पर किसान खेती भी इस मिट्टी की बदौलत करते हैं और वाटिका में भी यही मिट्टी काम में लाई जाती है। इसी मिट्टी के कारण साग-सब्जी, फल-फूल, तिल-दलहन की पैदावार होती है। यदि इस पृथ्वी पर समस्त भूमि पथरीली होती और उपजाऊ नहीं होती, तो समस्त जीवधारियों का जीवन सम्भव न होता।
- मेंथा की खेती कैसे करें
- भारत में मिट्टी कितने प्रकार की पाई जाती है
- मेंथा के साथ खेत में दो फसलें पैदा करें
वातावरण के अनुसार मिट्टी के प्रकार
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ घर-घर गृहवाटिका होना स्वाभाविक है। यहाँ की जनसंख्या का तीन चौथाई भाग खेती पर निर्वाह करता है। इस प्रतिशतता में हम गृहवाटिका के द्वारा अभिवृद्धि कर सकते हैं। मिट्टी पौधों और जीवों के अवशेषों से युक्त एक ढ़ीला जैव पदार्थ है। मिट्टी में मिश्रित यह जैव पदार्थ ह्यूमस कहलाता है। यही वह पदार्थ है, जो भूमि की ऊपरी मिट्टी को निर्मित करता है और इसी से पौधों को अपना जीवन प्राप्त होता है। चूँकि हर स्थान की अपनी प्रकृति, वातावरण और जलवायु होती है, अतः वहाँ की मिट्टी भी अपना स्वरूप उसी प्रकार बना लेती है।
जैसा कि आपको मालूम ही है कि भारत विविधताओं का देश कहा जाता है। यहां हर कदम पर भाषा और पहनावा बदल जाता है और इसी तरह कदम कदम पर मिट्टी भी बदल जाती है। भारत में निम्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं
- जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
- लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil)
- लाल मिट्टी (Red Soil)
- काली मिट्टी (Black Soil)
- रेतीली मिट्टी (Desert Soil)
जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
नदियाँ अपने पानी के साथ जो महीन और चिकनी गाढ़ी मिट्टी बहाकर लाती हैं, वे अपने तटों पर छोड़ती जाती हैं, जिससे उस क्षेत्र की मिट्टी जलोढ़ का रूप धारणा कर लेती है। इस प्रकार जलोढ़ मिट्टी नदियों के माध्यम से बनती है। यह मिट्टी अधिक उपजाऊ होती है। डेल्टाई क्षेत्रों और बाढ़ वाले क्षेत्रों में यह मिट्टी अधिक बारीक और चिकनी हो जाती है। इसे खादर भी कहा जाता है। ऐसी मिट्टी तराई वाले क्षेत्रों और नदी घाटियों के ऊपरी क्षेत्रों में पाई जाती है। खादर क्षेत्र में यह मिट्टी कुछ कम उपजाऊ होती है। गांगेय क्षेत्र में यह मिट्टी बड़ी मात्रा में पाई जाती है, जो सर्वाधिक उर्वर है। इस मिट्टी का विस्तार देश के ऊपरी मैदानी क्षेत्रों एवं डेल्टाई क्षेत्रों में हो जाता है।
लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil)
यह मिट्टी अधिकतर देश के मध्यवर्ती पठारों और पश्चिमी घाट के पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा व उष्णप्रद जलवायु में पाई जाती है। वर्षा का पानी इस मिट्टी की उर्वरता को अपने साथ बहाकर ले जाता है। इसी कारण इस मिट्टी में अधिक उपज उत्पन्न नहीं हो पाती।
लाल मिट्टी ( Red Soil)
देश के उष्ण और शुष्क क्षेत्रों जैसे दक्षिणी तथा पूर्व में यह मिट्टी पाई जाती है। वहाँ के स्फटिकपूर्ण आग्नेय शैलों से इस मिट्टी का निर्माण होता है। यह मिट्टी भी कम उर्वर होती है। यहाँ की मिट्टी में अच्छी उपज के लिए रासायनिक खादों और उर्वरकों का भली-भाँति उपयोग आवश्यक है।
काली मिट्टी (Black Soil)
ज्वालामुखी के लावा से इस मिट्टी का निर्माण होता है। यह मिट्टी उष्ण और शुष्क प्रदेशों में पाई जाती है। इस मिट्टी में उर्वर तत्त्व होते हैं। इसमें नमी भी अपेक्षाकृत अधिक होती है, जो उपज को बढ़ाने में उपयोगी सिद्ध होती है। गुजरात-महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में यह मिट्टी बहुतायत से पाई जाती है। कपास के लिए यह मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।
रेतीली मिट्टी (Desert Soil)
रेतीली मिट्टी रेगिस्तान में पाई जाती है। राजस्थान और पंजाब के कुछ इलाको में यह मिट्टी बहुतायत में मिलती है। रेतीली मिट्टी उपजाऊ नहीं होती और इसपर खेती करना भी कष्टकर होता है।
मिट्टी की पहचान के पश्चात् हम अपने किचन गार्डन में अच्छी तथा अधिक मात्रा में उपजने वाला साग-सब्जियाँ तथा फल-फूल उगायें। यदि किसी कारणवश यह संदेह या भ्रम हो जाये कि मिट्टी (जहाँ पौधे उगाने है) कम उपजाऊ हैं, तो वहाँ उर्वरको की सहायता ले लेनी चाहिये। रेतीली मिट्टी पर किचन गार्डन बनाना अत्यधिक कठिन कार्य होता है।
0 Comments